भारतीय उपमहाद्वीप की शानदार प्रकृतिक जलीय विरासत में से एक है ‘गंगा डॉल्फ़िन’। ये स्थानीय और दुर्लभ स्तनधारी भारत में हिमालय की तलहटी से लेकर गंगा सागर तक गंगा, ब्रह्मपुत्र व मेघना नदियों और इनकी सहायक नदियों में वास करता है। इसके अलावा बांग्लादेश, नेपाल और भूटान में भी ये पाया जाता है।
जंगल की सेहत जानने के लिए टाइगर और पहाड़ों की सेहत जानने के लिए स्नो लेपर्ड की जो अहमियत है वहीं अहमियत नदियों की सेहत के लिए डॉल्फ़िन की है। ये जीव अगर अपने वास स्थान में फल – फूल रहे हैं तो इससे पता चलता है कि उस पारिस्थितिकीय तंत्र में जीव के लिए पर्याप्त भोजन मतलब जैव विविधता और सुरक्षा है। नदी का पारिस्थितिकीय तंत्र किस अवस्था में है अगर ये जानना हो तो उसमें डॉल्फ़िन की उपस्थिति को एक ‘सूचक’ माना जाता है।
पृथ्वी में अब सादे (मीठे) पानी में पायी जाने वाली डॉल्फ़िन की केवल तीन प्रजातियाँ बचीं हैं। गंगा डॉल्फ़िन इनमें से एक है। इसके अलावा ‘सिंध नदी’ की डॉल्फ़िन -‘भूलान’ या ‘प्लैटैनिस्टा गैंजेटिका माइनर’ पाकिस्तान में और दक्षिणी अमेरिका की ‘अमेज़न नदी’ में पाये जाने वाली डॉल्फ़िन -‘बोटो’ या ‘इनिया जिओफ़्रेंसिस’ हैं। अभी हाल तक ही इस श्रेणी का एक और शानदार प्राणी पृथ्वी में मौजूद था। चीन की यांगत्सी नदी में पाये जाने वाली चीनी डॉल्फ़िन या ‘बिजी डॉल्फ़िन या ‘लिपोट्स वेक्सिलीफर’। सन 1980 तक ‘बिजी’ की आबादी लगभग 480 थी पर इनके वास स्थानों की बरबादी, इंसानी घुसपैठ, प्रदूषण का ऐसा प्रकोप हुआ कि 2006 आते-आते एक भी बिजी बाँकी नहीं बची। समुद्रों के मुक़ाबले नदियों में घुसपैठ और प्रदूषण का ज्यादा बुरा प्रभाव पड़ता है इसलिए नदियों पर जीवन-यापन करने वाली सभी सीटेशिएन्स खतरे में हैं। दुख की बात है कि साल 2006 में दो नावों ने यांगत्सी नदी में इसके वास स्थानों का 6 हफ्ते लगाकर 2 बार गहन सर्वे किया पर वे एक भी बिजी को नहीं ढूंढ पाये। एक बार धरती से गायब प्रजाति फिर लौट कर वापस नहीं आती। इसके बाद आईयूसीएन ने इसे ‘गंभीर रूप से विलुप्तप्राय और संभवतः विलुप्त’ प्रजातियों की श्रेणी में डाल दिया। हालांकि इसकी वापसी पर आज भी दुनियाँ भर के करोड़ों लोगों की आँखें लगीं हैं और चीन से आने वाली कोई भी खबर जो इस ओर इशारा करती हो कि यांगत्सी नदी के किसी हिस्से में बिजी को देखा गया न सिर्फ चीन में बल्कि दुनिया भर के हर उस इंसान के चेहरे पर जो पर्यावरण और जैव विविधता को समझता है खुशी की लहर दौड़ा देती है।
गंगा डॉल्फिन, प्लैटैनिस्टा गैंजेटिका गैंजेटिका, भारतीय उपमहाद्वीप में पाये जाने वाले सबसे करिश्माई विशाल जीवों (मेगा -फ़ौना) में से एक है। उपमहाद्वीप में ये भारत में हिमालय की तलहटी से लेकर गंगा सागर तक, बांग्लादेश, नेपाल और भूटान में पायी जातीं हैं। अनेक ऐतिहासिक दस्तावेजों से पता चलता है (जिनमें कि सम्राट अशोक, अकबर और जहाँगीर के जमाने के मुख्य हैं) कि कभी गंगा डॉल्फ़िन अपने वास स्थान में लाखों की संख्या में मौजूद थीं। आज इनकी अपने पूरे वितरण क्षेत्र में कुल संख्या 2500 से भी कम बची है। इनमें से 80% डॉल्फ़िन भारतीय क्षेत्र में हैं। इसकी मुख्य वजह नदियों के प्रवाह में कमीं, इनका शिकार (ज़्यादातर गैर इरादतन), डैम और बैराज बनने की वजह से इनके वास स्थान का छोटे-छोटे इलाकों में बिखराव (हेबीटाट फ्रेग्मेंटेशन) और नदियों का प्रदूषण है। ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहां अंधाधुंध मछ्ली पकड़ने वालों ने इस स्तनधारी को बड़ी मछ्ली समझ कर मार दिया।
गंगा डॉल्फ़िन का कानून के तहत संरक्षण करने के उद्देश्य से भारत सरकार ने इनको भारतीय वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 के शैड्यूल 1 में चीते, बाघ और शेर के साथ रखा है। ज़्यादातर दो नदियों के संगम के आसपास के गहरे पानी में पायी जाने वाले इस शानदार जीव को 2009 में भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव भी घोषित किया गया। अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) ने इसे अपनी लाल सूची में संकटग्रस्त प्रजातियों की श्रेणी में रखा है। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन द्वारा प्रत्येक वर्ष 5 अक्तूबर को ‘गंगा डॉल्फिन दिवस’ मनाया जाता है। गंगा नदी के पारिस्थितिकीय तंत्र की बहाली के लिए भी इस जीव का संरक्षण बेहद जरूरी है।
27 अप्रैल 2020 को कोविड -19 की वजह से लगे देशव्यापी पहले लॉकडाउन के दौरान उत्तर प्रदेश के मेरठ में गंगा नदी में डॉल्फ़िन को देखा गया। इसका विडियो इंटरनेट पर खूब पसंद किया गया। इस घटना को कोविड-19 की वजह से लगाए गए लॉक डाउन के दौरान नदियों के पारिस्थितिकीय तंत्र में अचानक आए सुधार से जोड़कर देखा गया। वहीं 8 जनवरी 2021 को एक दिल दहलाने वाला विडियो सामने आया जहां उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में कुछ लोगों ने डॉल्फ़िन को मछ्ली समझकर पीट-पीट कर मार डाला। इससे साफ समझ में आता है की गंगा के किनारे बसे गावों और लोगों में अभी इस संकटग्रस्त प्रजाति को लेकर पर्याप्त जानकारी नहीं है।
गंगा डॉल्फ़िन अब मुख्यतः गंगा और उसकी सहायक नदियों में ही बचीं हैं। इनकी सबसे ज्यादा संख्या भागलपुर के ‘विक्रमशिला गांगेय डॉल्फ़िन आश्रायणी’ में है जो कि इनके संरक्षण पर केन्द्रित एकमात्र शरणस्थली है। यहीं पर एक ‘डॉल्फ़िन वेधशाला’ भी बन रही है। आशा है कि भविष्य में गंगा डॉल्फ़िन के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ेगी, वैज्ञानिक संरक्षण का काम भी तेजी से बढ़ेगा और इस अमूल्य प्राणी को आने वाली पीढ़ियाँ केवल चित्रों और म्यूज़ियम में नहीं बल्कि नदियों में फलते-फूलते देख पाएँगी।
बैनर फ़ोटो आभार: आफ़ी अली/ विकिमीडिया कॉमन्स
Originally published on Jul 29, 2021
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