बारिश के पानी का संग्रह और भंडारण वर्षा जल संचयन कहलाता है। एकत्रित जल का उपयोग घरेलू, कृषि या अन्य उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है। यह भूजल पुनर्भरण में भी योगदान दे सकता है। हालाँकि भारत में वर्षा जल संचयन हज़ारों सालों से व्यापक था, 19वीं और 20वीं सदियों में वर्षा जल संचयन के पारंपरिक तरीके दुर्लभ होते गए। शहरीकरण के चलते यह वर्षा जल संचयन तकनीकें और कम हो गईं। आज के समय में केवल लगभग 8% वर्षा जल ही एकत्र किया जाता है। जब वर्षा जल को संग्रहित नहीं किया जाता है, तो यह बह के बर्बाद हो जाता है। यह भू -क्षरण और बाढ़ का कारण बनता है, और यदि यह दूषित हो तो जल प्रदूषण भी बढ़ा सकता है। [1]
तमिल नाडु में पानी के संसाधनों पर काफ़ी दबाव है और इसके एक तिहाई से अधिक भूजल स्थलों का अत्यधिक दोहन किया जा रहा है। [2], [3] यहाँ पानी की उपलब्धता केवल 900 क्यूबिक मीटर प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष होने का अनुमान लगाया गया है, जो जल के अभाव की सीमा से नीचे है। [4] इसे पता चलता है कि राज्य में जल सुरक्षा और पहुँच में सुधार के लिए वर्षा जल संचयन का बड़ा योगदान हो सकता है।
2001 में, तमिल नाडु छत पर वर्षा जल संचयन को अनिवार्य बनाने वाला भारत का पहला राज्य बना। [5] हालाँकि, भारत के अधिकांश स्थानों की तरह, यहाँ भी हज़ारों वर्षों से वर्षा जल संचयन और प्रबंधन का समृद्ध इतिहास है।
तमिल नाडु के लोग लंबे समय से बारिश के महत्व को समझते आए हैं। प्रसिद्ध तमिल कवि तिरुवल्लुवर ने तिरुक्कुरल में बारिश पर एक अध्याय लिखा है, जिसमें तमिल भाषा में निम्नलिखित पंक्तियाँ हैं: [6]
“वर्षा ही जीवन का अमृत माना जाये
यदि बादल से बूँदें न बरसे
तो पौधा मुश्किल से सर उठाए।“
संगम काल के दौरान, किसानों द्वारा सिंचाई के लिए वर्षा जल का संचयन किया जाता था। क्योंकि, इस क्षेत्र की नदियाँ बारहमासी नहीं हैं, इसलिए कई जल प्रबंधन तकनीकों का उपयोग किया जाता था जैसे टैंक (तटका), बाँध, नहरें, कुएँ, झीलें और ‘एरियाँ’। [7][8] एरी या येरी एक झील है जिसमें मिट्टी के तटबंध होते हैं और यह नदी के पानी या बारिश के लिए जल ग्रहण क्षेत्र के रूप में काम करती है। येरिआँ दो प्रकार की होती हैं: एक जो अन्य जल निकायों से जुड़ी होती हैं और दूसरी, जो अकेले स्थित होती हैं और बारिश का पानी एकत्रित करती हैं। [9]
तमिल नाडु का पारंपरिक जल प्रबंधन तंत्र

एरी या येरी
राज्य में ऐतिहासिक रूप से मौजूद जल प्रबंधन तंत्र में नदी का पानी छोटे जल निकायों में बहता है। ये छोटे जल निकाय भूजल पुनर्भरण करते हैं और कुओं में जल स्तर को बनाए रखते हैं। तंत्र का सारांश इस प्रकार है: [9]

कनमई एक कृत्रिम जलाशय है जिसमें नालियाँ होती हैं। करनई का मतलब आमतौर पर आर्द्रभूमि होता है और थांगल एक छोटा मानव निर्मित सिंचाई जलाशय है। येंथल एक जल निकाय है जो बारिश के पानी को जमा करता है, ऊरानी एक टैंक या कुआँ है जो पीने के पानी को संग्रहित करता है, और कुलम एक तालाब है जिसका उपयोग नहाने या जानवरों को नहलाने के लिए किया जाता है। कुटाई वर्षा जल के लिए एक छोटा जलाशय है।

वीरानम एरी या झील मानव निर्मित जल संचयन संरचना का एक बेहतरीन उदाहरण है। इसे 10वीं सदी सी.ई. में कुड्डालोर, तमिलनाडु में राजादित्य चोल ने बनवाया था। यह 14 किलो मीटर लंबी है और इसे दुनिया की सबसे लंबी कृत्रिम झील माना जाता है। यह वडावारु नदी के माध्यम से कोल्लिडम से पानी प्राप्त करती है और बारिश के पानी का भंडारण भी करती है। [11]
तमिल नाडु के कोविल कुलम
येरिओं के अलावा, टैंकों (तटकों) के रूप में भी तमिल नाडु में जल संचयन व्यापक था। कोविल कुलम मंदिर के टैंक हैं, जिनमें अक्सर सीढ़ियाँ होती हैं, जो तमिलनाडु में कई मंदिरों के पास बनाए गए हैं। वे अन्य जल निकायों से अच्छी तरह से जुड़े होते हैं और बारिश के पानी का भंडारण करते हैं। [9] इनके कुछ प्रसिद्ध उदाहरण हैं:

शिवगंगा टैंक: बालगणपति नगर, तंजावुर के बृहदीश्वर मंदिर से बारिश का पानी शिवगंगा टैंक में एकत्र किया जाता है। [12] मंदिर का निर्माण लगभग 1010 सी.ई. में राजराजा चोल प्रथम ने करवाया था। [16]

• हरिद्रा नदी मन्नारगुडी के राजगोपालस्वामी मंदिर के किनारे पर है। ऐसा माना जाता है कि इसे 10वीं सदी में कुलोत्तुंग चोल प्रथम के अधीन बनाया गया था। यह दुनिया के सबसे बड़े मंदिर टैंकों में से एक है। [17]

- मदुरै में वंडियुर मरिअम्मन तेप्पाकुलम का निर्माण 1645 सी.ई. में थिरुमलाई नायक के शासनकाल में किया गया था। [18]

- मायलापुर में कपालीश्वर टैंक या मायलापुर टैंक, कपालीश्वर मंदिर से सटा हुआ है। माना जाता है कि इसका निर्माण 7वीं सदी में पल्लवों ने कराया था। [19]
ऐतिहासिक जल प्रबंधन संरचनाएँ
इनके अलावा, तमिल नाडु में सैकड़ों वर्ष पहले बने बांध आज भी उपयोग में हैं।

- कल्लणै या ग्रैंड एनीकट तमिलनाडु के तंजावुर ज़िले में कावेरी नदी पर बना एक बांध है। इसे चोल राजा करिकालन ने पहली सदी सी.ई. के आसपास बनवाया था और इसे दुनिया की सबसे पुरानी जल विनियमन संरचनाओं में से एक माना जाता है। इसका उद्देश्य फसलों की सिंचाई करना था। [10]
- कलिंगारायण बाँध इरोड, तमिलनाडु में कलिंगारायण के अधीन 13वीं सदी में बनाया गया एक बांध है। यह प्राचीन जल प्रबंधन संरचना का एक और उदाहरण है जो आज भी खड़ा है। [13]
ये पारंपरिक विधियाँ और ऐतिहासिक संरचनाएँ हमें बहुत कुछ सिखाती हैं। हमें जल की कमी, भूजल के अत्यधिक दोहन, जल प्रदूषण और भूमि क्षरण सहित कई समस्याओं को रोकने के लिए वर्षा जल संचयन की क्षमता के बारे में पता चलता हैं। विशेषज्ञों ने यह भी सुझाव दिया है कि पारंपरिक वर्षा जल संचयन विधियों का उपयोग अधिक संधारणीय कृषि और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन के लिए किया जा सकता है। [14]
स्वदेशी ज्ञान और स्थानीय समुदायों का सहयोग वर्षा जल संचयन के पारंपरिक तरीकों को फिर से जीवित कर सकते हैं। यह स्थायी जल संसाधनों की रचना और देखभाल सुनिश्चित करने की ओर एक कदम होगा।
संदर्भ
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- Composite Water Management Index, NITI Aayog, 2019, https://www.niti.gov.in/sites/default/files/2023-03/CompositeWaterManagementIndex.pdf
- National compilation on Dynamic Water Resources of India, 2024, https://cgwb.gov.in/cgwbpnm/public/uploads/documents/17387543101433268167file.pdf
- Tamil Nadu ENVIS: http://tnenvis.nic.in/database/tn-envis_791.aspx
- Rainwater Harvesting, Tamil Nadu State Government: https://www.tn.gov.in/dtp/rainwater.htm
- TM Srinivasan, Agricultural Practices as gleaned from the Tamil Literature of the Sangam Age, Indian Journal of History of Science, 51.2.1 (2016) 167-189 https://www.insa.nic.in/writereaddata/UpLoadedFiles/IJHS/Vol51_2016_2_1_Art01.pdf
- Government of Meghalaya: https://megphed.gov.in/rainwater/Chap2.pdf
- Monsoon Harvests: The Living Legacies of Rainwater Harvesting Systems in South India, Kimberly J. Van Meter, Nandita B. Basu, Eric Tate, and Joseph Wyckoff, Environmental Science & Technology 2014 48 (8), 4217-4225, DOI: 10.1021/es4040182
- Water management practiced by 1000 years old Chozha dynasty in Tamil Nadu, India – A review, Poongodi Kolandasamy; Murthi Palanisamy, AIP Conf. Proc. 2971, 040044 (2024), https://doi.org/10.1063/5.0195848
- The Hindu Article on Kallanai: https://www.thehindu.com/news/cities/Tiruchirapalli/a-rock-solid-project-that-has-survived-2000-years/article4491152.ece
- Cuddalore Tourism: https://cuddalore.nic.in/tourist-place/veeranam-lake/#:~:text=Veeranam%20Lake%20%3A%20Veeranam%20Lake%20(Veeranarayanapuram,of%20Tamil%20Nadu%20inSouth%20India
- Tamil Nadu Water and Drainage Board, Rainwater Harvesting History https://www.twadboard.tn.gov.in/rain-water-harvesting-rwh#:~:text=History,the%20art%20of%20water%20management.&text=In%20ancient%20Tamil%20Nadu%2C%20rainwater,was%20collected%20in%20Shivaganga%20tank.
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