एक और शानदार पंछी ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (जीआईबी)’ को हम खोने की कगार पर हैं।
भारत में ‘बस्टर्ड’ की चार प्रजातियां पायीं जातीं हैं। ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ न सिर्फ इनमें सबसे भारी है बल्कि ये पृथ्वी पर उड़ने वाले सबसे भारी पंछियों में से एक है। 18 किलो तक वजन वाले ये पंछी अपना ज़्यादातर समय जमीन में ही बिताना पसंद करता है और कभी-कभार ही अपने वास स्थान के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में उड़ कर जाता है।
घास के मैदान इसको खासतौर पर पसंद हैं जहां इसे अपने लिए कीट, विभिन्न प्रकार की छिपकलियां और घास के बीज वगैरा इफ़रात में मिलते हों। ग्रेट इंडियन बस्टर्ड घास के मैदान के पारिस्थितिकीय तंत्र की सेहत जानने के लिए एक सूचक की तरह काम करता है।
कभी पूरे उपमहाद्वीप में मौजूद ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ अब 10 प्रतिशत भाग में भी नहीं बचा है। इसकी बची हुई संख्या ज़्यादातर थार रेगिस्तान में ही सीमित है।
50 साल पहले तक भी भारत में करीब 1000 जीआईबी थीं। 2020 फ़रवरी में भारत ने ‘यूएन कन्वेन्शन ऑन माईग्रेटरी स्पेसीज ऑफ वाइल्ड एनिमल्स’ की पार्टियों के गांधीनगर में हुए तेरहवें सम्मेलन को सूचित किया था कि भारत में केवल 150 जीआईबी ही बचीं हैं। जिसमें से 128 राजस्थान में, 10 कच्छ में और कुछ महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्रा प्रदेश में हैं। अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) ने जीआईबी को ‘घोर संकटग्रस्त’ प्रजातियों की सूची में डाला है।
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड प्रवास के लिए अनेक देशों की सीमाओं को पार करता है। इस दौरान भारत –पाकिस्तान के सीमावर्ती क्षेत्र में शिकार और भारत में बिजली-लाइन टकराव जैसी चुनौतियां इसके सामने आतीं हैं। भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्लूआईआई) के शोध के अनुसार राजस्थान में कम से कम 10 जीआईबी बिजली के तारों से टकराकर मरीं हैं। इन पंछियों की आगे देखने की क्षमता कम होती है और भारी वजन का होने के कारण वो तारों से भिड़ने पर फुर्ती से अपने को संभाल पाने में अक्षम होतीं हैं।
पिछले हफ्ते (26 जुलाई 2021) केंद्र सरकार ने राज्य सभा को जानकारी दी कि जनवरी 1, 2021 की स्थिति के अनुसार गुजरात के कच्छ जिले के ‘कच्छ बस्टर्ड अभयारण्य’ में एक भी ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ नहीं है। अभी दो महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने बिजली उत्पादन करने वाली कंपनियों को बिजली की लाइनों को ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के राजस्थान और कच्छ के वास स्थानों में भूमिगत करने के निर्देश दिये थे ताकि इस शानदार प्रजाति को विलुप्त होने से बचाया जा सके।
कच्छ बस्टर्ड अभयारण्य केवल 2 स्क्वायर किमी में है लेकिन इसका 220 स्क्वायर किमी का दायरा पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र है। आज जीआईबी का मुख्य आवास यहीं है। इस अभयारण्य के बनने के बाद इस इलाके में जीआईबी की संख्या 1999 में 30 से बढ़कर 2007 में 45 तक पहुंच गयी थी। लेकिन जैसे ही 2008 से अभयारण्य की सीमा पर पवन और सौर ऊर्जा की लाइनें आना शुरू हुईं 2018 में इनकी संख्या घटकर 25 रह गयी। आज इनकी संख्या केवल 7 ही बची है और इनमें से एक भी नर नहीं है।
जीआईबी का बचना अब काफी हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि उसके संरक्षण में लगे लोग कितनी सफलता हासिल कर पाते हैं।
यूएन कन्वेन्शन ऑन माईग्रेटरी स्पेसीज के गांधीनगर के सम्मेलन में ही ‘एशियाई हाथी’ और ‘बंगाल फ्लोरिकन’ के साथ ही ग्रेट इंडियन बस्टर्ड को ‘प्रवासी प्रजातियों के बारे में संयुक्त राष्ट्र समझौते के परिशिष्ट-I (सीएमएस के परिशिष्ट-I)’ में शामिल करने के भारत के प्रस्ताव को भी सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया। इससे अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण निकायों और मौजूदा अंतरराष्ट्रीय कानूनों और समझौतों से इन प्रजातियों का देशों की सीमाओं में भी संरक्षण करने में मदद मिलेगी।
2015 में केंद्र सरकार ने जीआईबी के संरक्षण के लिए ‘जीआईबी स्पेसीज़ रिकवरी प्रोग्राम’ शुरू किया। जिसके तहत भारतीय वन्य जीव संस्थान (डबल्यूआईआई) और राजस्थान सरकार के वन विभाग ने मिलकर संरक्षण प्रजनन केंद्र बनाया है जिसमें वन्य क्षेत्र से जीआईबी के अंडे लाकर अप्राकृतिक रूप से सेए जाते हैं और नियंत्रित वातावरण में उनमें से बच्चे निकलते हैं। पिछले साल तक ऐसे 9 अंडों से बच्चे निकाले जा चुके हैं। इस तरह से इनकी कम से कम इतनी संख्या तैयार करने कि योजना है कि विलुप्त होने की खतरे झेल रही ये प्रजाति बच सके और इस तरह के बंद वातावरण में तैयार हुई तीसरी पीढ़ी को छोड़ा जाए।
(ग्रेट इंडियन बस्टर्ड. बैनर आभार: Prajwalkm/ विकिमिडिया कॉमन्स)
Publishing Date: Aug 7, 2021
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