इस वर्ष (2021) के शुरुआत में आरंगर ने अपना पहला जमीनी काम अलवर के कीटला गाँव में जोहड़ तैयार करने का किया। कीटला गाँव, ग्राम पंचायत: धीरोड़ा, पोस्ट ऑफिस: राजगढ़, अलवर जिले में आता है और दौसा जिले से करीब ३५ किमी है।
जोहड़ एक तरह का तालाब ही है जिसमें बारिश के पानी को इकट्ठा किया जाता है। अरावली की छोटी पहाड़ियों से घिरे ऊबड़ –खाबड़ इस इलाके में इन पहाड़ियों से बहकर आने वाले पानी को कच्चा बांध बनाकर आसानी से रोका जा सकता है। मिट्टी पत्थर से बने कच्चे बांध को समय के साथ घास और पेड़-पौधे मिलकर मजबूती देते हैं। पूर्वी राजस्थान के सूखे इलाके में बारिश के पानी को रोकने का ये काफी पुराना, प्रचलित और कामयाब तरीका है। यहां बारिश के पानी को सँजोने के अलावा साफ पानी के दूसरे स्रोत जैसे की बारहमासी नदियां या प्रकृतिक झरने नहीं हैं ऐसे में जोहड़ बनाने जैसे परंपरागत तरीके पानी की कमीं वाले महीनों में भी पानी मुहैया करने में काफी कारगर सिद्ध हुए हैं।
कीटला गाँव के लोगों की सालाना आमदनी २०,००० रुपए से भी कम है। पानी के अभाव में साल में केवल एक बार मानसून में ही खेती हो पाती है। ये पशुपालक समुदाय है पर पानी की कमी के चलते हरा चारा भी जानवरों को उपलब्ध नहीं है। जिसकी वजह से दूध उत्पादन भी आधा रह गया है। ऐसे हालातों में गांव के लोगों के पास केवल एक ही चारा रह जाता है कि वे शहरों की ओर दिहाड़ी मजदूर बनकर चले जाएं। जिन धंधों में वो जाते हैं वे किसी भी तरह से सुरक्षित नहीं होते। गांव की महिलाएं और लड़कियां तो हर दिन ३ से ४ घंटे केवल पानी भरने में ही लगा देती हैं क्योंकि अमूमन ३ से ४ किमी दूर से हर दिन पानी भरने जाना होता है वो भी कई चक्कर। ऐसे में बच्चों खास कर लड़कियों के स्कूल जाने का व कुछ सीखने का समय बाधित रहता है। कितने आश्चर्य की बात है कि केवल बारिश के पानी के सही संचय से इतनी सारी समस्याओं का हल निकाला जा सकता है।
जमीनी स्तर पर यह काम १६ जनवरी २०२१ को शुरू हुआ और २२ फरवरी २०२१ को पूरा हो गया। जोहड़ निर्माण का यह पूरा काम सामुदायिक भावना से किया गया। इसमें आए खर्चे का वहन १०९ लोगों ने व्यक्तिगत दान के माध्यम से किया। हमारे फील्ड सहयोगी कुंज बिहारी शर्मा जी ने बताया कि कई प्रवासी मजदूर भी इस काम में जुटे जो कोविड-१९ के चलते घर आए हुए थे। कोविड-19 से पैदा हुई अभूतपूर्व स्थिति को देखते हुए काम का एक बड़ा हिस्सा हाथ से किया गया और जेसीबी मशीन के इस्तेमाल को जितना संभव हुआ कम किया गया। कुल मिलाकर जो काम हुआ उसका सार कुछ इस तरह है:
१. कीटला गांव में कुल ४२७६ क्यूबिक मीटर या ४२७६००० लीटर क्षमता का जोहड़ बना।
२. इस काम ने कुल २२ लोगों को १४६ दिन की दिहाड़ी के बाराबर रोजगार उपलब्ध कराया जिसमें से ६८ प्रतिशत महिलाएं थीं।
इस वर्ष मानसून यदि सामान्य रहता है तो उम्मीद की जा रही है कि ये जोहड़ गांव के काफी बड़े इलाके में खेती संभव बना पाएगा और करीब १०० परिवारों की आय को प्रभावित करेगा। गांव में कम से कम १३ कुएं ऐसी जगह स्थित हैं जो इस जोहड़ के भरने से रिचार्ज होंगे तो महिलाओं की दूर-दराज से घर के कामों के लिए पानी ढ़ोने की समस्या के भी कुछ कम होने की उम्मीद की जा रही है।
अपडेट
11 जुलाई 2024 की तस्वीरें इस जोहड़ की सफलता की कहानी कह रही हैं।
- ये पोस्ट ७ जून २०२१ को पहली बार पब्लिश हुई थी
- ६ सितम्बर २०२४ को पोस्ट अपडेट की गयी
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