धरती की शान – इसकी जैव विविधता – को बचाने में दिलचस्पी रखने वालों के लिए एक खुशखबरी है कि ‘ब्लू फिंड माहसिर’ को अंतर्राष्ट्रीय पृक्रति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) की लाल सूची के ‘संकटग्रस्त’ प्रजातियों वाली श्रेणी से हटा दिया गया है। इसका मतलब है कि वो अब विलुप्त होने के खतरे से बाहर हो चुकी है। ‘ब्लू फिंड माहसिर’ अब ‘संकटमुक्त प्रजातियों’ की श्रेणी में है। हालांकि माहसीर कि अन्य प्रजातियाँ जैसे कि गोल्डन माहसीर और हम्पबैक माहसीर अभी भी ‘घोर संकटग्रस्त’ श्रेणी में हैं।
तथ्य: कौन है माहसीर
मछलियों में टाइगर के नाम से जाने जाने वाली ‘माहसीर’ साफ पानी में पायी जाने वाली सबसे मजबूत बड़ी मछलियों में से एक है। साइप्रिनिड परिवार की माहसीर की खासियत उसके बड़े-बड़े शल्क (स्केल्स), मोटे और शक्तिशाली होंठ और मुह के सामने के लंबे बारबेल (मुह के पास पाये जाने वाले बाल जैसे संवेदी अंग) हैं।
जब नदी में बारिश का पानी बहुतायत में होता है माहसीर ज़्यादातर प्रजनन तभी करती है और पानी के अंदर पाये जाने वाले पत्थरों, चट्टानों आदि पर अंडे देती है। इसकी प्रजनन क्षमता कम है (6000- 10,000 अंडे प्रति किग्रा)। एक माहसीर मछ्ली करीब 10 सेमी प्रति वर्ष की दर से बढ़ती है। ये सर्वहारी हैं मतलब सब कुछ खा लेती है। जब ये एक जगह से दूसरी जगह जाती हैं (माइग्रेशन) तो सभी उम्र की मछलियाँ मांसाहारी और सर्वाहारी होती हैं जबकि 46 सेंटीमिटर से कम आकार की मछलियाँ छोटी मछलियों को खाने लगती हैं।
दुनिया में माहसीर की 47 किस्में मौजूद हैं जिसमें से भारत में 15 पायी जाती हैं। ‘टोर रेमादेवी’ और ‘टोर मोयरेंसिस’ नाम की नयी नस्ल की माहसीर अभी हाल में ही पहचानी गयीं हैं।
सुनहरी माहसीर
सुनहरी (गोल्डन) माहसीर पीठ की तरफ सुनहरे रंग की होती है और इसके पंख कुछ लालिमा लिए हुए पीले रंग के होते हैं। गंगा और ब्रह्मपुत्र और इनकी सहायक नदियों में गोल्डेन माहसीर पायी जाती है।
सुनहरी माहसीर की संख्या में भारी कमी आयी है जिसके पीछे वजह प्रदूषण, माहसीर के प्राकृतिक आवास का खतम होना और इन मछलियों को अत्यधिक पकड़ना मुख्य हैं। माहसीर अपने पर्यावरण को लेकर संवेदनशील है और यदि पानी के पर्यावरण में फेर बदल होता है तो ये उसे बर्दाश्त नहीं कर पाती। गोल्डन माहसीर आई यू सी एन (इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर) की ‘संकटग्रस्त प्रजातियों की रेड लिस्ट (लाल सूची) में शामिल है। मतलब कि इनकी संख्या इतनी कम बची है कि अगर इनका समय रहते संरक्षण नहीं किया गया तो इनके पृथ्वी से गायब होने के खतरे हैं।
हंपबैक माहसीर
पिछले 150 सालों से ‘हंपबैक माहसीर’ मतलब ‘कूबड़ वाली माहसीर’ के नाम से जानी जाने वाली माहसीर को जून 2018 में अंततः वैज्ञानिक नाम दिया गया। ‘कावेरी का टाइगर’ नाम से विख्यात इस प्रजाति को ‘जिओलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया’ में काम करने वाली मशहूर मत्स्य विज्ञानी के. रेमदेवी के नाम पर ‘टोर रेमादेवी’ नाम दिया गया है। इस नामकरण के लिए जरूरी डीएनए सिक्वेन्सिंग को ‘केरला यूनिवरसिटि ऑफ फिशेरीज एंड ओशन स्टडीस, ‘इंडीयन इंस्टीट्यूट ऑफ साइन्स एडुकेशन एंड रिसर्च (पुणे), और बोर्नमाउथ यूनिवरसिटि, यूके के एक ग्रुप ने किया।
कूबड़ वाली माहसीर केवल दक्षिण भारत के कावेरी नदी और उसकी सहायक नदियों में पायी जाती है जिसमें कूर्ग, मोयार, भवानी, काबिनी और पंबार आदि के छोटे छोटे इलाके आते हैं। ये मछ्ली 1.5 मी तक लंबी और 55 किग्रा तक भारी हो सकती है। शोधार्थी इन्हें विशाल काय जन्तु (मेगाफ़ौना) की श्रेणी में रखते हैं।
वैज्ञानिक नाम न मिलने से ‘कूबड़ वाली माहसीर’ को काफी नुकसान हुआ। इसकी वजह से ये मछ्ली, मछलियों के संरक्षण में लगे वैज्ञानिकों की नजरों से इतने सालों तक बची रही और इसे कानूनी आधार पर सुरक्षा या संरक्षित श्रेणी में लाकर बचाने के प्रयास नहीं किए जा सके। एक बात जो इस शानदार मछ्ली को विलुप्त होने से बचा पायी वो थी इसका केरल के ‘चिन्नार’ में पाया जाना। ‘चिन्नार’ संरक्षित क्षेत्र होने के साथ ही वन्यजीव अभयारण्य भी है जहां मछ्ली पकड़ने की मनाही है। आम लोगों कि पहुंच से दूर ये सुरक्षित इलाका ‘कूबड़ वाली माहसीर’ के लिए वरदान साबित हुआ।
वैज्ञानिक नाम मिलने के एक साल के अंदर ही मतलब 2019 में इस ‘कूबड़ वाली माहसीर’ को आईयूसीएन (इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर) की रेड लिस्ट (लाल सूची) में ‘घोर-संकटग्रस्त’ प्रजातियों की श्रेणी में शामिल किया गया। इस सूची में दुनिया भर की उन प्रजातियों को रखा जाता है जो विलुप्त होने के गंभीर खतरे झेल रहीं हैं मतलब जिनकी संख्या इतनी कम है कि अगर जैसा चल रहा है वैसा ही चलता रहे तो वे बहुत जल्द ही धरती में नहीं दिखेंगी।
सुनहरी माहसीर. बैनर चित्र आभार: Derek Dsouza/ विकिमिडिया कॉमन्स
Leave a Reply